
झारखंड अलग राज्य आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाली 81 वर्षीय सीता रानी जैन अपने हाथों से खूबसूरत कपड़े की मूर्तियां बनाकर अपने परिचितों और आसपास के लोगों को बांटती हैं। हर साल गणेश चतुर्थी पर दर्जनों मूर्तियां दूसरों को गिफ्ट करती हैं। साल भर में वे 100 से ज्यादा मूर्तियां बना लेती हैं। कहती हैं दूसरों को गिफ्ट देने में आत्मिक खुशी मिलती है। मैं सभी मूर्तियां खुद बनाती हूं और गढ़ती हूं। इन्हें बनाकर मुझे आत्मिक खुशी मिलती है।
बांटने की खुशी से बड़ा कोई सुख नहीं। लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग भी देती हूं। जिंदगी में हुनर रहे तो कोई समस्या मुश्किल नहीं लगती। मैं एक क्लास भी नहीं पढ़ी। एक वक्त आया जब मेरा परिवार रास्ते पर आ गया, लेकिन सिलाई-कढ़ाई, खाना बनाने के गुर ने मुझे सक्षम बना दिया। चार बच्चों सहित पूरे परिवार को संभाली और आज भगवान ने इतना दिया है कि 2 रोटी खाती हूं तो 2 बांट भी लेती हूं। झारखंड ने मुझे आश्रय दिया, इसलिए अलग राज्य आंदोलन में शुरू से जुड़ी रही। एक बार जेल भी गईं।
5 साल की उम्र से भगवान की मूर्तियां गढ़ रही हूं
5 साल की उम्र से मूर्तियां बना रही हूं। पढ़ नहीं पाई। मां ने सिलाई, कढ़ाई, बुनाई और खाना बनाने की ट्रेनिंग दी। रांची में शादी हुई। 3 लड़के और एक लड़की हैं। उस समय मैं वीमेंस कॉलेज के पास चाय-नाश्ता का स्टॉल लगने लगीं। फिर फिरायालाल के पास नाॅर्थ पोल नाम से होटल खोली, 10 रुपए थाली खाना देती थी।
2015 में मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं सम्मान और पेंशन
बच्चे-परिवार की जिम्मेवारी के साथ बिहार से अलग झारखंड हो, इसकी भी जिम्मेवारी ले ली। 1988 से मैं झामुमो की महिला मंच से जुड़ी। 6 अक्टूबर 1993 को नामकुम स्टेशन में ट्रेन के सामने धरना देने लगी। 3-4 दिन जेल में रही। शिबू सोरेन मुझे जैन आंटी कहते हैं। 2015 में मुख्यमंत्री ने सम्मानित कर पेंशन भी दी।
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