रूपेश साहू | अगस्त महीने का पहला रविवार फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाने का क्रेज युवाओं में बढ़ता जा रहा है। गांवों में विभिन्न त्याेहारों, शादियों, मेला, धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान गांव गांव के लोग मिलते हैं जो दोस्ती को बरकरार रखने महाप्रसाद, गंगाजल, तुलसीजल, भोजली बंधने की परंपराएं हैं। इस प्रकार की परंपराएं सदियों से चली आ रही है। इनका प्रचलन कम जरूर हुआ है लेकिन परंपरा आज भी कायम है। एक बार जो इस प्रकार से दोस्ती के बंधन में बंध जाता है वह जीवन भर इसको निभाते हैं। इन बंधनों में बंधने के बाद जब आपस में मिलते हैं तो एक दूसरे का नाम नहीं लेेते बल्कि जोहार सीताराम कहते हैं। ऐसे ही संबंधों में बंधने वाले कुछ उदाहरण...
दोस्त की मौत के बाद भी परिवार से संबंध कायम : ग्राम मनकेशरी निवासी हीरामन पटेल 87 वर्ष ने कहा बचपन में मरकाटोला निवासी रामदयाल व दमकसा निवासी सोहन के साथ महाप्रसाद बंधे थे। जब तक दोनों दोस्त जीवित रहे तब तक दोस्ती का रिश्ता अटूट रहा। अब दोनों दोस्त इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अभी भी दोनों मितान के परिवार के साथ पारिवारिक संबंध कायम है।
24 साल पहले बंधे थे महाप्रसाद के बंधन में
ग्राम दसपुर निवासी देवलाल साहू तथा छबिलाल निषाद 24 साल पहले वर्ष 1996 में रंगपंचमी पर्व के दिन महाप्रसाद बंधे थे। दोनों के बीच दोस्ती आज भी कायम है। देवलाल साहू ने कहा मेरे बहुत से दोस्त हैं लेकिन उनमें से महाप्रसाद बंधने वाले छबिलाल बेहद खास हैं जिनके साथ मैं स्कूल में पढ़ाई के दौरान महाप्रसाद बंधा था। छबिलाल निषाद ने कहते हैं सालों पुरानी दोस्ती दोनों निभाते आ रहे हैं तथा कभी भी एक दूसरे को कोई परेशानी हो मदद के लिए खड़े रहते हैं।
दोस्ती के बंधन में बंध जाता है पूरा परिवार
दसपुर के प्रकाश चंद्र निषाद ने सहपाठी राजेंद्र मरकाम के साथ स्कूली जीवन में तुलसीजल बंधा था। दोनों की दोस्ती आज भी बरकरार है जिसके पीछे बड़ा कारण उस वक्त तुलसीजल बंधना है। ग्राम साल्हेटोला में नरेटी परिवार के साथ उनकी मित्रता दादा के समय से चली आ रही है। दादा के बाद, उनके पिता व फिर उन्होंने दोस्ती का निर्वाह किया। पांच वर्ष पहले प्रकाश चंद्र निषाद ग्राम कोड़ेजुंगा निवासी सुखनंदन महावीर के साथ ग्राम आंवरी में गायत्री माता धार्मिक अनुष्ठान में तुलसीजल बंधे थे।
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