जैन धर्म का दशलक्षण महापर्व सादगी रुप से मनाया जा रहा है।10 दिनों तक चलने वाले महापर्व के नौवें दिन सोमवार को उत्तम आकिंचन धर्म की विधि कर पूजा की गई। रामगढ़ के श्री दिगंबर जैन मंदिर और रांची रोड के श्रीपारसनाथ जिनालय में जैन धर्मावलंबियों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर उत्तम आकिंचन धर्म की विधि की। वहीं,धर्मावलंबियों ने अपने घरों में पर्व की पूजा कर पाठ की।
रामगढ़ के श्रीदिगंबर जैन मंदिर में प्रथम जलाभिषेक जीवनमल पाटनी व शांतिधारा विधि संपतलाल चूड़ीवाल ने की, और रांची रोड के जिनालय में प्रथम जलाभिषेक विधि इंद्रमणि देवी चूड़ीवाल व शांतिधारा विधि राकेश पांड्या ने की। पंडित सुदेश जी जैन ने बताया कि आत्मा के अपने गुणों के सिवाय जगत में अपनी अन्य कोई भी वस्तु नहीं है। इस दृष्टि से आत्मा अकिंचन है और अकिंचन रूप आत्मा-परिणति को आकिंचन करते है।
जीव संसार में मोहवश जगत के सब जड़ चेतन पदार्थों को अपनाता है, किसी के पिता, माता, भाई, बहन, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र आदि के विविध संबंध जोड़कर ममता करता है। मकान, दूकान, सोना, चाँदी, गाय, भैंस, घोड़ा, वस्त्र, बर्तन आदि वस्तुओं से प्रेम जोड़ता है। शरीर को तो अपनी वस्तु समझता ही है। इसी मोह ममता के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति इस मोही आत्मा की प्रिय वस्तु की सहायता करता है, तो उसको अच्छा समझता है उसे अपना हित मानता है। जो इसकी प्रिय वस्तुओं को लेशमात्र भी हानि पहुंचाता है उसको अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है, लड़ता है, झगड़ता है इस तरह संसार का सारा झगड़ा संसार के अन्य पदार्थों को अपना मानने के कारण चल रहा है। मीडिया प्रभारी राहुल जैन ने बताया मंगलवार को उत्तम ब्रह्मचर्य की पूजा होगी।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2EzQt1a
No comments:
Post a Comment