
वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी मां जानकी के प्रादुर्भाव को लेकर आज के दिन मैथिली दिवस मनाया जाता है। इसी दिन देवताओं की प्रार्थना पर रावण का समूल संहार एवं पृथ्वी का भार उतारकर धर्म की स्थापना के लिए विदेहराज महाराज जनक के घर मिथिलानगरी में मां जानकी प्रकट हुई थी। यह जानकारी ज्योतिर्विद मिहरकांत झा ने दी। उन्होंने बताया कि पुराणों एवं शास्त्रों के अनुसार एक बार मिथिलानगरी में भीषण अकाल पड़ा। लोग दाने-दाने के लिए माेहताज हो गए।
तब ऋषिगण एवं गुरुजनों ने महाराज जनक को कहा कि हे महाराज अगर आप स्वयं सोने के हल से बंजर खेत की जुताई करेंगे तो मिथिला में अवश्य वर्षा होगी एवं मिथिलानगरी अकाल से मुक्त हो जाएगा। तब महाराज जनक विधिवत पूजन के बाद सोने से निर्मित हल से खेत को जोतने लगे। इसी दौरान हल से खेत में कुछ ही दूरी पर एक मटका टकराया।
विश्व कल्याण के लिए है जानकी नवमी का व्रत, करनी चाहिए पूजा
इस दिन को पूरे भारतवर्ष में सनातन धर्मावलंबी जानकी नवमी का व्रत रखते हैं। यह व्रत शुभ मंगल, विश्व कल्याण, समृद्धि एवं आरोग्य प्रदान करता है। भविष्य पुराण में मार्कण्डेयजी कहते हैं यथा शक्ति विधिवत व्रत पूजन करें। मां की आराधना करें। मां जानकी के चरण कमल का ध्यान-स्मरण एवं भजन करने से सदा कुशलता एवं आनंद की प्राप्ति होती है। मां जगदंबा की कृपा से जगत सदैव फलता-फूलता है। माता चौदहों भुवनों की रक्षा करते हुए अपने आश्रितों के महान पाप सागर को भी नष्ट कर देती है। इसलिए वर्तमान में विश्वव्यापी कोराेना महामारी से पूरी मानव जाति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस संकट से रक्षा के लिए सभी अपने घर में मां जानकी की आराधना करें। संयम का पालन करें। अपने मानवीय भूल के लिए माता से क्षमायाचना करें एवं अपने आप को यथाशक्ति जन कल्याण की ओर अग्रसर करें।
मटके में रखी बच्ची के रूप में अवतरित हुई थीं मां सीता
मिट्टी से मटके को बाहर निकाला गया तो उसमें से एक बच्ची अवतरित हुई। संतानहीन विदेहराज जनक ने उसे अपनी मानद पुत्री के रूप में स्वीकार किया। हल द्वारा माटी को चीर कर निर्मित क्यारी को सीत कहा जाता है। इसलिए माता का नाम सीता रखा गया। महाराज जनक की पुत्री होने से जानकी एवं मिथिला की बेटी होने के कारण माता मैथिली कहलाती हैं। इस दिन को मैथिली दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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