जिले में पैदा होने वाले वनोपज ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख साधन है। हर वर्ष 1500 टन चिरौंजी नागपुर और फिर वहां से अरब देशों में निर्यात होता है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण जिले का चिरौंजी गांव तक ही सीमित रह गई है। चिरौंजी की खरीदारी के लिए बाहर से व्यापारी नहीं आ पाए हैं और ना ही ग्रामीण उसे स्थानीय बाजार में बेचने के लिए लेकर आ रहे हैं। चिरौंजी क्षेत्र की प्रमुख वनोपज है। यह जंगली फल चार का बीज है।
इस साल यहां इसके फूलने के दौरान बारिश नहीं होने से फूल झड़ गए थे। उससे चार की पैदावार उतनी अच्छी नहीं हुई है। ज्यादातर ग्रामीण इन दिनों सुबह होते ही जंगल का रुख कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इन दिनों उनका पूरा परिवार जंगल पहुंच कर वनोपज संग्रहण में व्यस्त है। जंगल में तेंदूपत्ता संग्रहण के साथ ग्रामीणों को चिरौंजी से अच्छी खासी आमदनी हो रही है। छत्तीसगढ़ के सूखे मेवा के नाम से देश के महानगरों में बिकने वाली चिरौंजी की मांग अधिक रहती है। इसके कारण संग्राहकों को अच्छी कीमतें मिल जाती थी।
कई प्रदेशों से आतीथी चिरौंजी की डिमांड
यहां के चिरौंजी की डिमांड महाराष्ट्र के नागपुर, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा श्रीनगर में भी है। यही कारण है कि चिरौंजी का सही दाम मिल जाता था, लेकिन इस वर्ष लॉक डाउन हो जाने के कारण जिले की चिरौंजी बाहर नहीं जा सकी है और ग्रामीण उसे अपने घरों में ही सहेज कर रख रहे हैं।
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