छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीसाबंदियों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को मीसा बंदियों व उनकी विधवाओं की रोकी गई एक साल के पेंशन राशि को देने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के जस्टिस पी. सैम कोशी की बेंच ने 12 मार्च 2020 को आदेश के लिए फैसला सुरक्षित रखा था। बिलासपुर की जानकी गुलाबानी, रामाधार चंद्रा सहित अन्य ने अधिवक्ता भारत गुलाबानी, गालिब द्विवेदी, अमियकांत तिवारी के माध्यम से याचिका पेश की। इसी तरह बिलासपुर के ही मीसा बंदी सीताराम कश्यप की विधवा रूपादेवी सोनी ने अधिवक्ता सुप्रिया उपासने के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि मीसा अधिनियम के अंतर्गत 25 जून 1975 से 31 मार्च 1977 तक मीसा अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत जेल में बंद नागरिकों को सम्मान निधि प्रदान की जा रही थी। प्रदेश में मीसा बंदियों को पेंशन की शुरुआत रमन सरकार के कार्यकाल में लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि नियम 2008 के तहत हुई थी। मीसा बंदी की मृत्यु पर विधवा को सम्मान निधि की आधी राशि सरकार देती थी।
प्रदेश में सरकार बदलने पर प्रदेश की वर्तमान सरकार भौतिक सत्यापन के नाम पर पहले 28 जनवरी 2019 से राशि देनी बंद की गई। याचिकाकर्ता ने उक्त आदेश को न्यायालय में चुनौती देकर इसे लागू किए जाने की याचना की थी। इस दौरान सरकार ने इस नियम को 23 जनवरी 2020 से अधिसूचना जारी कर निरसित कर दिया था। जिससे उक्त दिनांक से पेंशन की पात्रता खत्म हो गई थी। इसे चुनौती देने पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले में माना कि विगत एक दशक तक जिस पेंशन का लाभ याचिकाकर्ताओं को प्राप्त हुआ उसे अचानक बिना उनकी गलती से बंद किया जाना अन्यायपूर्ण था। साथ ही साथ सरकार ने इस योजना के अंतर्गत पेंशन की पात्रता रखता है या नहीं, इसकी भी कभी जांच नहीं की। कोर्ट ने सरकार के निर्णय को त्रुटिपूर्ण बताया, क्योंकि इसके पूर्व प्राकृतिक न्याय के नियमों का पालन अथवा ध्यान नहीं दिया गया। विभिन्न न्याय दृष्टांतों का हवाला देते हुए जस्टिस पी. सैम कोशी की बेंच ने याचिका स्वीकृत की। अपने फैसले में स्पष्ट किया कि समस्त याचिका में पेंशन की पात्रता आदेश दिए जाने से लेकर निरसन अधिसूचना की तारीख तक बनती है।
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