प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आते ही बलरामपुर में हजारों वनवासियों ने कई पीढ़ी से काबिज भूमि का पट्टा पाने के लिए आवेदन किया। तब सरकार ने भी इसे महत्वाकांक्षी अभियान के तौर पर लिया था और अफसरों को पट्टा बनाकर देने के निर्देश दिए थे। इसे डेढ़ साल से भी अधिक हो गया है, लेकिन अब तक पट्टा का वितरण नहीं हुआ है। जबकि 34 सौ हितग्राहियों को जमीन का मालिकाना हक देने के लिए सिर्फ जिला स्तरीय वन अधिकार समिति के अनुमोदन का इंतजार है। इसकी वजह से वन कर्मी और राजस्व के अधिकारी कर्मचारी इन हितग्राहियों को बेदखली की धमकी दे रहे हैं। इससे विवाद की स्थिति भी बन रही है।
दैनिक भास्कर को पड़ताल में पता चला है कि सरगुजा संभाग में सबसे अधिक वन और राजस्व भूमि में काबिज हितग्राही हैं। इनमें 3458 हितग्राही ऐसे हैं जिनका आवेदन जांच में सही पाया गया है। कई बार मौके पर वन समिति और पटवारी व वन विभाग ने सत्यापन भी किया है। इसके बाद भी पट्टा नहीं मिलने से ग्रामीण इलाकों में सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। बता दें कि 2008 से लेकर अब तक 25807 हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टा जारी किया गया है। 34 सौ से अधिक हितग्राहियों में से ऐसे कई हैं, जिनको खेती के दौरान वन और राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। हितग्राहियों का कहना है कि जब वे उस सत्यापित काबिज जमीन पर हल चलाते हैं तो उन्हें जेल भेजने की धमकी दी जाती है। ऐसे में उन्हें पट्टा की जरूरत है। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के नेता इसे आने वाले दिनों में बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
600 प्रकरणों में नक्शा का नहीं था सीमांकन
आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त आरके शर्मा ने बताया कि नई सरकार बनने के बाद 51 हजार आवेदनों के निरस्त होने के बाद उन पर समीक्षा कर पात्र लोगों को पट्टा देने का आदेश मिला था। इस पर समीक्षा की गई जिसमें 3458 हितग्राहियों को पात्र पाया गया। इसके बाद ग्राम वन अधिकार समिति, अनुभाग स्तरीय समिति का अनुमोदन किया गया। इसके बाद प्रकरण यहां आया तो उसमें से छह सौ आवेदन में नक्शा लगा था, लेकिन नक्शा में सीमांकन नहीं था। अब सभी त्रुटियां ठीक कर ली गई हैं। जिला स्तरीय समिति की बैठक 20 दिनों के भीतर हो जाएगी और अक्टूबर में पट्टा बंट दिए जाएंगे।
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