इच्छाशक्ति मजबूत हो तो शारीरिक कमजोरी भी कोई मायने नहीं रखती और लक्ष्य हासिल करने लोग आगे निकल पड़ते हैं। अपनी पढ़ाई को लेकर कुछ ऐसा ही काम शहर के डिगमा हाई स्कूल में पढ़ने वाला कक्षा दसवीं का छात्र डिगमा निवासी महेश सिंह कर रहा है। महेश के दोनों हाथ बचपन से ही नहीं हैं। दूसरे सामान्य बच्चों की तरह शारीरिक रूप से मजबूत नहीं होने के बाद उसने हिम्मत नहीं हारी। बचपन में ही वह घर में पैरों से लिखने का अभ्यास करने लगा तो पिता ने पांच वर्ष की उम्र में गांव के प्राइमरी स्कूल में उसका एडमिशन करा दिया। शिक्षकों ने उसकी मदद की और अब वह इस साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा में शामिल होगा। महेश ने बताया कि उसे कभी ऐसा नहीं लगा कि उसके दोनों हाथ नहीं है। मैं दूसरे सामान्य बच्चों की तरह पैर से निर्धारित समय में लिखता हूं। इस साल कोरोना के कारण स्कूल नहीं गया, लेकिन घर में मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है। महेश के पिता की करीब 8 साल पहले मौत हो गई है। वह शिक्षक बनना चाहता है।
क्लास रूम में दो बैंच पर अकेले बैठकर लिखता है
प्राइमरी व मिडिल स्कूल तक जमीन पर बैठकर पढ़ने से स्कूल में कोई दिक्कत नहीं हुई। हाई स्कूल में जब वह पहली बार गया तो वहां टेबल पर बैठकर विद्यार्थियों को पढ़ना था। इससे उसे लिखने में दिक्कत होने लगी। फिर शिक्षकों ने उसके लिए दो टेबल एक साथ बैठने के लिए दिए। इस पर वह क्लास में अकेले बैठकर पढ़ाई करता है और दूसरे छात्र भी उसका सहयोग करते हैं।
महेश को नायक बनाकर संस्कृत में लिखा ब्लाॅग
महेश की इच्छा शक्ति व पढ़ाई के प्रति ललक देखकर असोला हाई स्कूल की संस्कृत की शिक्षिका दीपलता देखमुख पढ़ाई तुहर दुआर को लेकर बच्चों का उत्साहवर्धन करने महेश को लेकर संस्कृत में पहला ब्लाॅग लिखा। उन्होंने बताया कि वे महेश की हर संभव मदद करनी चाहती हैं ताकि उसकी पढ़ाई पूरी हो और उसका सपना साकार हो सके।
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