जंगलों की वनोपज जहां वनवासियों के लिए जीवन यापन का जरिया है। वहीं मौत का कारण भी बनती है। वजह जंगलों में हाथियों व अन्य वन्यजीवों का रहवास होना है। ऐसे में वनवासी जब जंगल में महुआ या लकड़ी बीनने जाते हैं और हाथियों या अन्य जानवरों से सामना हो जाता है तो उन्हें जान गंवानी पड़ती है। खास तौर से महुआ की सीजन में इस तरह की घटनाएं अधिक होती हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले छह साल में हाथियों के हमले में सबसे ज्यादा 150 लोगों की मौतें महुआ के सीजन में ही हुई हैं। वहीं इसी अंतराल में महुआ की गंध के कारण करीब 2500 घर भी हाथियों ने तोड़े हैं।
सूरजपुर जिले के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में सोमवार देर रात कोरंधा निवासी सीता राजवाड़े 48 वर्ष और बंशीपुर निवासी चेतन राजवाड़े 50 वर्ष 4 साथियों के साथ जंगल की ओर जा रहे थे। इस दौरान उनका प्यारे हाथी के दल से सामना हो गया। इसमें सीता और चेतन को हाथियों ने पटक-पटक कर मार डाला। जबकि अन्य 4 साथियों ने भागकर जान बचाई। दूसरे दिन जब दोनों देर तक घर नहीं लौटे तो परिजन उन्हें खोजते हुए जंगल की तरफ पहुंचे। जहां दोनों के क्षत विक्षत शव मिले। ग्रामीणों की सूचना पर वन अफसर और पुलिस मौके पर पहुंची। पूछताछ के बाद अफसरों ने आगे की कार्रवाई की है।
जंगलों में 85 हाथी अलग-अलग दल में भटक रहे हैं
सरगुजा सहित सूरजपुर, बलरामपुर जिले में 85 हाथी अलग-अलग दल में भटक रहे हैं। तैमोर पिंगला अभयारण्य, घुई, प्रतापपुर रेंज राजपुर के अलावा मैनपाट की तराई इलाके में हाथियों का दल घूम रहा है। मैनपाट इलाके में हाथियों का गौतमी दल एक साल से डटा हुआ है।
मुनादी करा रहे हैं, लेकिन नहीं मान रहे ग्रामीण: सीएफ
वाइल्ड लाइफ के सीएफ एसएस कंवर ने बताया कि महुआ का सीजन शुरू होते ही प्रभावित इलाकों में सतर्कता बढ़ा दी गई है। मैदानी अमले से लगातार मुनादी कराई जा रही है कि हाथी वाले इलाके में ग्रामीण महुआ बीनने नहीं जाएं। बंशीपुर इलाके में लंबे समय से हाथियों का दल भटक रहा है।
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