पंजाबी थिएटर में महिलाओं की इंट्री कराने वाली उमा गुरुबख्श सिंह अब हमारे बीच नहीं रहीं। लेकिन उनकी उपलब्धियां रहती दुनिया तक याद की जाएंगी। उमा ने थिएटर के मंच पर उस वक्त कदम रखा था जब महिलाओं के लिए किरदार निभाना वर्जित था। महिलाओं का रोल पुरुष प्ले करते थे। समाज की सोच से विपरीत कदम उठाने पर उनको ताने तो सहने ही पड़े, जेल भी जाना पड़ा था।
उमा गुरबख्श सिंह प्रसिद्ध लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी थीं। वह अपने भाई और लेखक हृदय पाल के साथ प्रीत नगर में रहती रहीं। गुरबख्श सिंह की 6 संतानों नवतेज सिंह, हृदय पाल सिंह, उर्मिला आनंद, प्रतिमा पात्रा, अनुसुइया और उमा एक थीं। हृदयपाल ने याद करते हुए बताया कि बात उन दिनों की है जब आजादी का आंदोलन मुखर होने लगा था। उमा ने 1945 में लाहौर गार्डन के ओपन एयर थिएटर में म्यूजिकल नाटक “हुल्ले हुलारे’ खेला था।
नाटक देखने सरोजनी नायडू, रवि शंकर, अमजद अली खान जैसे लोग आए थे। नाटक के गीत “कड्ड दियो बाहर फिरंगियां नूं , समुंदरों पार फिरंगियां नूं...’ पेश किया तो विवाद हो गया। अंग्रेजों ने उमा सहित नाटक के सभी पात्रों को 1 महीने के लिए जेल में डाल दिया था। प्रसिद्ध लेखक और वकील खुशवंत सिंह ने केस लड़ा था। उमा ने 1942 में प्रीत नगर में पं. जवाहर लाल नेहरू के सामने सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गीत भी गाया था।
समाज की सोच से विपरीत जाने पर जेल भी जाना पड़ा था
पेशे से इंजीनियर गुरबख्श सिंह ने अमृतसर और लाहौर के मध्य एक बड़े भूभाग पर प्रीत नगर नामक नगर बसाया। यह उस दौर में एशिया की पहली प्लांड सिटी थी। यहां पर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, फैज अहमद फैज, साहिर लुधियानवी, उपेंद्र नाथ अश्क, करतार सिंह दुग्गल, बलवंत गार्गी, मोहन सिंह और अमृता प्रीतम, मुल्क राज आनंद, बलराज साहनी, नानक सिंह, शोभा सिंह जैसे लोग रहा करते थे। उमा के छोटे भाई हृदयपाल सिंह बताते हैं कि प्रीत नगर के माहौल का असर उन भाई-बहनों पर भी पड़ा। पहली बार उन्होंने 7 जून 1939 को गुरबख्श सिंह के लिखे नाटक “राजकुमारी लतिका’ में उमा ने नायिका का किरदार निभाया।
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