शहर में बेतरतीब निर्माण और प्रशासनिक अनदेखी से 30 से ज्यादा मैदानों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। हालात ऐसे हैं कि न तो खेल के लिए आरक्षित मैदान बचे और न ही स्कूली बच्चाें के खेलने के लिए मैदान बचे हैं। ऐसे में खेल के शौकीन लोगों को खेलने के लिए मैदान ही नहीं बचे हैं।
भास्करने शहर के खत्म हो रहे मैदानों को लेकर पड़ताल की। इसमें सामने आया कि बीते 20 वर्ष में शहर के 30 से ज्यादा मैदानों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। हालात ऐसे हैं कि प्रशासनिक अनदेखी से कुछ मैदानों को सब्जी मार्केट के लिए आरक्षित कर दिया गया है, तो कुछ को सरकारी आयोजनों के लिए आरक्षित दिया गया है।
इतना ही नहीं कई ऐसे मैदान हैं, जो कि विकास कार्य के लिए अधिग्रहित कर लिए गए हैं। वहीं, इस मामले में स्कूल भी पीछे नहीं रहे हैं। शहर के दस से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं, जहां या तो अतिक्रमण हो गया है या फिर स्कूलों के विस्तार के लिए निर्माण कार्य करवा दिए गए हैं। ऐसे में शहर की विभिन्न कॉलोनियों में रहने वाले बच्चों को खेलने के लिए जगह ही नहीं मिल रही है। कुछ क्षेत्रों में तो बच्चों को गार्डन तक की सुविधा नहीं मिल रही है।
सप्रे मैदान का भी व्यावसायीकरण
सप्रे मैदान में कुछ वर्ष पूर्व सड़क चौड़ीकरण का शिकार हो गया। वहीं, अंदर की बची जगह में पाथ-वे बना दिया गया। जिससे इसकी जगह काफी छोटी हो गई। वहीं, अब मैदान के भी व्यावसायीकरण की शुरूआत की जा चुकी है। मैदान को यहां छोटा करते हुए चौपाटी बनाने के लिए काम किया जा रहा है।
शहर की पहचान रहे इन बड़े मैदानों का अस्तित्व खत्म
गंज मैदान: यहां पहले काफी बड़ा मैदान हुआ करता था, जो कि अब पार्किंग में तब्दील हो गया है।
हिंद स्पोर्टिंग मैदान: यहां पहले फुटबॉल का आयोजन किया जाता था। अब सब्जी मार्केट लगाया जा रहा है। साथ ही अतिक्रमण से भी यह अब छोटा हो गया है।
मोतीबाग: यहां पानी टंकी बना दी गई है। साथ ही अखाड़ा भी बन गया है, जिससे यह मैदान भी खत्म हो गया है।
साइंस कॉलेज मैदान: साइंस कॉलेज मैदान भी काफी बड़ा था। जबकि निर्माण और विकास कार्यों में भी यह अब आधा रह गया है।
बीटीआई ग्राउंड: यहां पहले कई तरह की प्रतिस्पर्धाओंका आयोजन किया जाता था। जबकि अब इसे फंक्शन के लिए उपयोग में लाया जाता है।
गांधी मैदान: इसी तरह गांधी मैदान भी काफी बड़ा था। जो कि अब पार्किंगमें तब्दील हो गया है। साथ ही अतिक्रमण से भी अब यह छोटा हो गया है।
फुटबॉल ग्राउंड: फुटबॉल के लिए आरक्षित ग्राउंड को अब धरना स्थल के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
पुलिस लाइन मैदान: यहां पहले सिविल लाइंस के रहवासी समेत आसपास के लोग खेलने आते थे। जिसे अब बैरक में उपयोग किया जाता है।
जिला अस्पताल: कालीबाड़ी स्थित जिला अस्पताल जिस जगह पर बना है, वहां भी पहले बड़ा मैदान हुआ करता था।
इन स्कूलों के मैदान हुए निर्माण और अतिक्रमण का शिकार
आमानाका सरकारी स्कूल: इस सरकारी स्कूल में अब मैदान न के बराबर बचा है। कुछ जमीन रविवि ने ले ली जबकि कुछ में विस्तार कर दिया गया।
मंडी गेट सरकारी स्कूल: यहां भी स्कूल की जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है। साथ ही विस्तार ने भी मैदान छोटा कर दिया।
पुलिस लाइन स्कूल: यहां पुराने स्कूल की जगह नया स्कूल बना दिया गया। लेकिन मैदान को परिसर में शामिल नहीं किया गया है।
चंगोरा सरकारी स्कूल: यहां बाजार चौक के पास सरकारी स्कूल के मैदान के पास अब अतिक्रमण हो गया है।
छग स्कूल संताेषी नगर: यहां भी अब मैदान काफी छोट हो गया है, जहां अब वैवाहिक कार्यक्रम समेत अन्य आयोजन हो रहे हैं।
शांति नगर गर्ल्स स्कूल: इस स्कूल के मैदान के पास सड़क का चौड़ीकरण और डिवाइडर बनाने में इसकी लंबाई आधी हो गई है।
मदरसा मोतीबाग: मोतीबाग के मदरसे के पास भी बड़ा मैदान था, जो कि अब टंकी निर्माण और अतिक्रमण के कारण खत्म हो गया हैॅ।
मठपुरैना मूकबधिर स्कूल: यहां सरकारी स्कूल और मूकबधिर स्कूल के पास कब्जा कर लिया गया है। साथ ही मैदान भी काफी छोटा हो गया है।
विवेकानंद स्कूल पेंशनबाड़ा: जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से ही लगे हुए स्कूल के विस्तार के कारण मैदान का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।
जरूरत के हिसाब से तय करें जगह
"ग्राउंड को लेकर मिनिमम रिक्वायरमेंट तय किया जाना चाहिए। ताकि बच्चों को खेलने के साथ लोगों को घूमने, एक्सरसाइज करने सहित अन्य सुविधाएं दी जा सकें। शहर अब महानगर का आकार ले रहा है, ऐसे में खाली जगह छोड़ना उचित नहीं है।"
-सत्यनारायण शर्मा, विधायक, ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र, रायपुर
मैदानों को छोटा नहीं करना चाहिए
"स्कूलों में बच्चों के ग्राउंड बेहद आवश्यक है। ऐसे में उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर मैदान को छोटा नहीं कराना चाहिए। मैंने सप्रे शाला में हो रहे निर्माण को लेकर निगम और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों को बुलाकर पूरी जानकारी मांगी है। जल्द ही जानकारी मिल जाएगी।"
-बृजमोहन अग्रवाल, विधायक, दक्षिण विधानसभा क्षेत्र, रायपुर
मैदानों के व्यावसायीकरण का विरोध
"बीटीआई मैदान के व्यावसायीकरण का मैं लगातार विरोध कर रहा हूं। विधानसभा में भी मैंने सवाल लगाए थे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब हमारी सरकार है, हम पूरा प्रयास कर रहे हैं, िक लोगों को स्कूल समेत अन्य जगहों में खेल मैदान मिलें।"
-कुलदीप जुनेजा, विधायक, उत्तर विधानसभा क्षेत्र, रायपुर
लगातार विरोध किया जा रहा है
"मैं अपने विधानसभा क्षेत्र के मैदानाें को बचाने के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहा हूं। पिछली सरकार में भी हमने इसे लेकर काफी विरोध किया है। आगे भी यह लड़ाई जारी रहेगी।"
-विकास उपाध्याय, विधायक, पश्चिम विधानसभा क्षेत्र, रायपुर
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