कोरोना संक्रमण के खतरे ने विसर्जन झांकी पर भी विघ्न डाल दिया है। इस बार शहर में विसर्जन झांकियां नहीं निकलेंगी। झांकियों की अनुमति नहीं मिलने के साथ ही शहर में 100 साल पुरानी परंपरा भी टूट रही है। आस्था और उत्साह के लिहाज से यह जितना जिलेवासियों को निराश करने वाला है, वहीं कई परिवारों के आगे सालभर के जीवन यापन की व्यवस्था पर भी संकट डाल रहा है। यह पूरी विसर्जन झांकी का खर्च करीब दो करोड़ रुपए आता है। जो इस बार बनाने वालों और इसमें शामिल लोगों की रोजी-रोटी के लिए विघ्न की ही बात है।
गणेश विसर्जन के दिन निकलने वाली झांकियों के भरोसे कई परिवारों की रोजी-रोटी चलती रही है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जिनके जीवन-यापन के लिए इसी एक दिन के विसर्जन के भरोसे पूरे सालभर का खर्च निकलता है। इसमें झांकी बनाने वाले कलाकार शामिल हैं। इस बार झांकी नहीं निकलने के चलते इनके सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। प्रशासन ने झांकी में जुटने वाली भीड़ और इससे संक्रमण के खतरे को देखते हुए इसके लिए अनुमति नहीं देने का फैसला कर लिया है। हर साल झांकी की रात में ही शहर में करीब 3 लाख लोग जुटते रहे हैं।
समझिए विसर्जन झांकी से जुड़े आर्थिक एंगल को
शहर में विसर्जन की रात करीब 35 से 40 झांकियां शहर में निकलती है। एक झांकी की लागत ढाई से तीन लाख रुपए रहती थी, जिसमें लाइट, डेकोरेशन और साउंड वालों को अलग से रोजगार मिलता था। हर झांकी के पीछे कलाकार को 50 से 60 हजार तक का मुनाफा होता था। इसके अलावा दुर्ग और रायपुर जैसे शहरों में झांकी बिकने के बाद बड़ा लाभ कलाकारों को होता रहा है।
छोटे दुकानदारों पर भी मार, बड़ा अवसर खत्म
झांकी नहीं निकलने का बड़ा नुकसान शहर के छोटे-छोटे दुकानदारों, ठेले और खोमचे संचालकों को भी होगा। झांकी में शाम से पूरी रात तक तीन से साढ़े तीन लाख लोगों की भीड़ जुटती रही है। इससे छोटे-छोटे दुकानदारों, खिलौना बेचने वालो, ठेला खोमचों वाले को भी कमाई का बेहतर मौका मिलता रहा है। पहले ही लॉकडाउन और प्रतिबंध से इनकी कमाई प्रभावित हुई हैं।
पढ़िए, कलाकारों और साउंड सिस्टम संचालक की जुबानी, कैसी है दिक्कत
मैं और मेरे सभी साथी अब बेरोजगार हो गए हैं
देवा रंगारी, झांकी आर्टिस्ट: मैं 25 साल से अलग-अलग समितियों के लिए झांकी बनाते आ रहा हूं। हर साल 8 से 10 झांकी बनाता हूं। इसमें मेरे से 10 से 15 कारीगर और लाइट-डेकोरेशन के साथी भी काम करते थे। एक झांकी के पीछे ढाई से तीन लाख की लागत आती है। हमारा मुनाफा 50 से 60 हजार रहता था। इसी के भरोसे पूरे सालभर का खर्च चलता था।
यह बड़ा नुकसान, कई परिवार इसी भरोसे हैं
मनीष तिवारी, साउंड सिस्टम संचालक: झांकियों में शहर के 35 से 40 साउंड सिस्टम और बैंड-धुमाल वालों को रोजगार मिलता था। इसके अलावा लाइट डेकोरेशन और हमारी संस्थाओं में काम करने वालों के लिए यह बड़ा मौका रहता था। लेकिन इस बार झांकी नहीं निकलने से बुकिंग नहीं होगी। पहले ही करीब 6 महीने से हमारा बंद पड़ा हुआ है।
दिन में ही होगा विसर्जन, 10 से अधिक लोग नहीं जुटेंगे
नगर निगम आयुक्त ने गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर गाइडलाइन जारी किया है। इसके मुताबिक सभी प्रतिमाओं का विसर्जन दिन में करना होगा। शाम 7 बजे के बाद विसर्जन की अनुमति नहीं मिलेगी। विसर्जन झांकियां नहीं निकाली जा सकेंगी। विसर्जन के समय और रैली में 10 से अधिक लोग मौजूद नहीं रहेंगे। 10 साल से कम और 60 साल से अधिक उम्र के लोग इसमें शामिल नहीं होंगे। हर सदस्य मास्क लगाएगा और विसर्जन के लिए छोटे वाहनों का ही प्रयोग किया जाएगा ।
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