जिले भर में कोरोना के अब तक 993 मामले सामने आ चुके हैं। पर मनोरा एक ऐसा विकासखंड है जहां अबतक सिर्फ 11 मामले सामने आए हैं। विभाग का कहना है कि लोगों की जागरूकता और ग्रामीण इलाका होने की वजह से मनोरा में कोविड-19 का ज्यादा संक्रमण नहीं हो सका है। पर जांच के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं।
जांच पर गौर करें तो मनोरा ही एकमात्र ऐसा विकासखंड है जहां जांच सबसे कम हुई है। अब जब कलेक्टर ने कैंप लगाकर जांच बढ़ाने का आदेश दिया और बीएमओ को नोटिस जारी किया, उसके बाद भी प्रतिदिन औसतन 15 से 20 जांच ही वहां हो पा रहा है। मनोरावासी कोविड संक्रमण की कम संख्या से खुश हों या फिर जांच कम होने से संभावित खतरे को लेकर डरें यह उनकी समझ में नहीं आ रहा है। मनोरा का सीधा जुड़ाव जशपुर से है क्योंकि यह जशपुर का सबसे नजदीकी विकासखंड भी है। जिले में अबतक मिले कोरोना संक्रमितों की बात करें तो पत्थलगांव विकासखंड में 174, फरसाबहार में 101, कांसाबेल में 104, कुनकुरी में 128, दुलदुला में 75, बगीचा में 110, लोदाम में 101 और जशपुर शहरी में 189 लोग संक्रमण के शिकार हो चुके हैं। वहीं मनोरा में अबतक संक्रमित सिर्फ 11 हैं। इसमें से भी 8 संक्रमित उस वक्त मिले थे जब हर ग्राम पंचायत में क्वारेंटाइन सेंटर बनाए गए थे और प्रवासी मजदूरों को वहां ठहराया जा रहा था। ग्राम पंचायतों के क्वारेंटाइन सेंटर बंद होने के बाद से सेंटर से बाहर मनोरा में सिर्फ चार केस मिले हैं। मनोरा विकासखंड मुख्यालय में सिर्फ एक केस सामने आया है। जशपुर जिला मुख्यालय से मनोरा की दूरी सिर्फ 18 किमी है। जशपुर के व्यापारी, नौकरीपेशा लोगों का मनोरा आना-जाना लगा रहता है। मनोरा के बाजार में आधे से अधिक दुकानें जशपुर के व्यापारियों द्वारा लगाई जाती है।
यह वजह बता रहे स्वास्थ्य विभाग के अफसर - स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि गांव-गांव में बने क्वारेेंटाइन सेंटर का लाभ मनोरा को मिला है। जो भी प्रवासी आए उनकी जांच उन्हें सेंटर में रखा गया और जांच की गई। जिस कारण गांव तक संक्रमण नहीं फैल पाया। मनोरा में ग्रामीण इलाके अधिक हैं और यहां तक संक्रमण नहीं पहुंच सका है। लोगों में जागरूकता है, किसी भी बाहरी को गांव में नहीं घुसने दिया जाता है। यदि कोई बाहर से पहुंचता है तो ग्रामीण तत्काल इसकी सूचना प्रशासन काे देते हैं।
जांच नहीं होना बड़ा खतरा -जांच के अभाव में संक्रमितों की पहचान नहीं हो रही है यह भी एक बड़ी वास्तविकता है। यदि संक्रमितों की पहचान नहीं हुई तो जल्द कोविड का सामुदायिक संक्रमण भी शुरू हो जाएगा। जांच ना कराना ना सिर्फ एक व्यक्ति बल्कि परिवार की जान से खिलवाड़ है।
भीड़ कम नहीं, हाेटल में बैठाकर खिला रहे
संक्रमित केस नहीं निकलने से मनोरा में बेपरवाही भी देखी जा रही है। यहां साप्ताहिक बाजार की भीड़ में ना तो सोशल डिस्टेंसिंग देखी जाती है और ना ही अधिकांश लोग मास्क का उपयोग करते हैं। सामान्य दिनों में जब होटल खुलते हैं तो यहां होटल के भीतर लोगों को बैठाकर खिलाया जाता है। जांच के लिए जिले से अफसर नहीं पहुंचते हैं तो स्थानीय प्रशासन का रवैया ढुलमुल है।
सीधी बात
डॉ.रौशन बरियार, बीएमओ, मनोरा
लोग नहीं आ रहे जांच कराने
सवाल -मनोरा में जिले में अबतक सबसे कम सिर्फ 11 केस आए हैं यह {अच्छी बात है या चिंताजनक?
- मनोरा ब्लॉक में संक्रमण अभी ना के बराबर है। यहां क्वारेंटाइन सेंटर में ही प्रवासी मजदूरों में जो संक्रमित होकर पहुंचे थे उनकी पहचान कर ली गई थी। गांव तक संक्रमण नहीं पहुंच पाया है।
सवाल -ऐसा कैसे संभव है, क्या वजह हो सकती है?
- मनोरा में ग्रामीण इलाके अधिक है। यहां के लोगों में भी जागरूकता है। लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं और गांव में यदि कोई बाहरी व्यक्ति आता है तो ग्रामीण ही तत्काल उसकी सूचना प्रशासन को दे देते हैं। जबतक व्यक्ति की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आ जाती तब तक उसे गांव में घुसने नहीं दिया जाता है।
सवाल -प्रतिदिन कितनी जांच हो रही है?
- अभी प्रतिदिन 10 सैंपल आरटीपीसीआर के लिए जा रहे हैं और लगभग 5 से 7 सैंपल रेपिड एंटीजन किट से हो रही है।
सवाल -यह तो बेहद कम है, जांच कम होना ही तो संक्रमितों के कम होने की वजह तो नहीं, जांच क्यों नहीं बढ़ाई गई है?
- लोग खुद से जांच कराने के लिए नहीं पहुंच रहे हैं। लोगों में डर है कि कहीं वे पॉजिटिव आ गए तो परिवार से दूर अस्पताल में दस दिन रहना पड़ेगा। अभी लॉकडाउन के कारण अस्पताल की ओपीडी में भी मरीज नहीं आ पा रहे हैं, इसलिए जांच नहीं बढ़ पा रही है।
सवाल -कलेक्टर के निर्देश पर क्या जांच के लिए कैंप लगाए जा रहे हैं?
- नहीं अबतक कैंप शुरू नहीं किया जा सका है।
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