प्रदेश में फीस को लेकर जहां पालकों व स्कूल प्रबंधनों के बीच विवाद गहरा रहा है वहीं राष्ट्रीय स्तर पर एजुकेशन को लेकर हुए सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। छत्तीसगढ़ में 2010 में 52 फीसदी माताएं ऐसी थीं जो कभी स्कूल ही नहीं गईं। जबकि 2016 में ये घटकर 46.7 फीसदी रह गईं।
इसी तरह स्कूल न जाने वाले पिता 2010 में 29.2 प्रतिशत थे। देश की बात करें तो 27.1 फीसदी पिता कभी स्कूल नहीं गए। 2018 में ये 26 फीसदी रह गए। सर्वे में ये भी पता चला है कि ग्रामीण भारत शहरी से ज्यादा साक्षर है। यहां शिक्षा भी शहरों की तुलना में सस्ती है। छत्तीसगढ़ में 2010 तक पहली से पांचवीं कक्षा तक 22 प्रतिशत, छठवीं से दसवीं तक 22.9 और दसवीं कक्षा से ऊपर तीन प्रतिशत माताएं ही पढ़ीं थीं।
जबकि 2016 तक इसमें इजाफा हुआ और ये प्रतिशत क्रमश: 21.4, 29.2 और 5.9 % हो गया। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर 14.4, 29.9 और 9.1 प्रतिशत तक हो गया। अन्य राज्यों की तुलना में सीजी का प्रदर्शन बेहतर कहा जा सकता है। इसी तरह पिताओं की शिक्षा की बात करें तो असर के डेटा के अनुसार 2010 में जहां 27% पिता स्कूल नहीं गए थे।
वहीं केरल सबसे बेहतर स्थिति में रहा। वहां कक्षा एक से पांचवीं तक 10.2 % दसवीं तक 68 और दसवीं से ज्यादा पढ़ने वाले 21.4 प्रतिशत थे।
शहरों से तीन गुना कम खर्च होता है ग्रामीण इलाकों में
एनएसओ ने शिक्षा पर एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया। इसमें देश में साक्षरता दर 77.7% पाई गई। शहरी क्षेत्रों में साक्षरता दर 87.7% की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर 73.5% मिली। लगभग 13.6% भारतीयों ने कभी भी स्कूल में नामांकन नहीं करवाया। इनमें 15.7% व्यक्ति ग्रामीण और 8.3% शहरों से थे।
शैक्षणिक सत्र के दौरान सामान्य शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों ने शहरी क्षेत्रों में 16 हजार 308 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में 5 हजार 240 रुपए औसतन शिक्षा पर व्यय किए। जबकि तकनीकी अथवा व्यावसायिक शिक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति छात्र 32 हजार 137 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 64 हजार 763 रुपए औसतन खर्च आया।
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