
साल में एक बाद खुलने वाले आलोर के लिंगई माता मंदिर को भक्तों के लिए इस साल बंद रखा गया। हालांकि बुधवार को मंदिर खोला गया, लेकिन सिर्फ 5 पुजारियों ने यहां पूजा-अर्चना की और रेत में बने निशान देखकर मंदिर बंद कर दिया। अब अगले साल मंदिर के पट खुलेंगे।
बताया जाता है कि बुधवार को सुबह साढ़े 5 बजे मंदिर के पट पुजारियों ने खोले और पूजा-अर्चना कर रेत में बने निशान देखे, जिसमें शेर के पंजे और हाथी के पांव के निशान मिले। इसके आधार पर पुजारियों ने भविष्यवाणी की है कि इस साल बस्तर धन-धान्य से परिपूर्ण होगा।
साल में एक ही दिन खुलता है लिंगई माता का पट: आलोर के लिंगई माता मंदिर का पट खुलते ही पांच व्यक्ति रेत पर अंकित निशान देखकर बस्तर अंचल का भविष्य बताते हैं। पीढ़ियों से चली आ रही इस विशेष परंपरा और लोकमान्यता के कारण भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के बाद आने वाले बुधवार को एक दिन शिवलिंग की पूजा होती है। लिंगेश्वरी माता का द्वार साल में एक बार ही खुलता है, जिसमें बड़ी संख्या में नि:संतान दंपती यहां संतान की कामना लेकर पहुंचते हैं।
जानिए... इसलिए नाम रखा गया लिंगई माता
फरसगांव ब्लॉक मुख्यालय से करीब 9 किमी दूर आलोर गांव से करीब दो किमी की दूरी पर लिंगई माता का मंदिर है। एक छोटी पहाड़ी पर चट्टान फैली हुई है, जहां चट्टान पर विशाल पत्थर मौजूद है। बाहर से अन्य पत्थर की तरह दिखने वाला यह विशाल पत्थर अंदर से स्तूप की तरह है। दरअसल ये पत्थर किसी कटोरे को उल्टा रखने की तरह दिखता है, जहां एक छोटी सी सुरंग है, जो इसी गुफा का प्रवेशद्वार भी है। प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि यहां बैठकर या लेटकर ही प्रवेश करना होता है। अंदर करीब 25 से 30 लोग आसानी से बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान के बीचों-बीच प्राकृतिक शिवलिंग है, जिसकी लंबाई लगभग ढाई फीट है। अंदर स्थापित प्राकृतिक शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने शिव और शक्ति के समन्वित नाम लिंगई माता का नाम दिया है।
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