
चिरकुंडा स्थित लायकपाड़ा में माता दुर्गा की प्रतिमा दशमी तक जंजीर में बंधी रहेंगी। यहां वर्षों से मां की प्रतिमा को अष्टमी के दिन विधि-विधान से जंजीर में बांधने की परंपरा है। यह परंपरा इस साल भी शनिवार को निभाई गई। अष्टमी पूजा से पहले वहां के पुजारी ने मां की प्रतिमा को जंजीर से बांध दिया।
अब यह जंजीर दशमी के दिन खुलेगी। मान्यता है कि यहां मां जागृत हैं। बिना जंजीर बांधे जब अष्टमी, नवमी एवं दशमी को वैदिक मंत्रोच्चार से मां की पूजा शुरू होती थी, तो मां की प्रतिमा में कंपन होने लगता था। यह देखकर स्थानीय पुजारी ने कई साल पहले देश के बड़े विद्वान पंडितों से इस पर सुझाव मांगे थे। विद्वान पंडितों ने कहा था कि यहां मां प्रत्यक्ष रूप से निवास करती हैं, पूजा से पहले मां को लोहे की जंजीर से बांधना जरूरी है। तभी से यहां अष्टमी, नवमी और दशमी को मां की प्रतिमा को जंजीर से बांध दिया जाता है।
400 वर्ष पूर्व काशीपुर के राजा ने बनाया था मंदिर
चिरकुंडा का यह क्षेत्र कभी जंगल हुआ करता था। 400 साल पहले इस जंगल में काशीपुर के राजा ने माता का मंदिर बनाया था। गांव के लोग बताते हैं कि मंदिर में पूजा के समय शेर आकर बैठते थे और पूजा होने के बाद शेर वापस जंगल में चले जाते थे। यह देखकर काशीपुर के राजा ने यूपी से पंडितों को बुला कर उन्हें यहां बसाया था। उन्हें लायक टाइटल देकर मां की आराधना और पूजन की जिम्मेवारी सौंपी। लायक परिवार ही आज भी यहां मां की पूजा करता है।
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