गिरिडीह के पूर्व सांसद और सिंदरी व टुंडी से विधायक रहे राजकिशाेर महताे का बुधवार देर शाम निधन हाे गया। 74 साल के राजकिशाेर झारखंड आंदाेलन के पुराेधा पूर्व सांसद बिनाेद बिहारी महताे के बड़े बेटे थे। फेफड़े में इंफेक्शन के कारण दाे सप्ताह पहले सेंट्रल हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया था। घर लाैटने पर मंगलवार काे फिर तबीयत बिगड़ी ताे उन्हें जालान अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हाेंने अंतिम सांस ली। उनका कोरोना टेस्ट निगेटिव आया था। गुरुवार काे उनका पार्थिव शरीर विनाेद नगर स्थित आवास पर आमलाेगाें के दर्शन के लिए रखा जाएगा। शुक्रवार काे बलियापुर के बगदाहा में उसी जगह अंत्येष्टि हाेगी, जहां उनके पिता की हुई थी।
पार्टी की विचारधारा के आगे कभी नहीं झुके, जब सिद्धांत की बात आई तो छोड़ दिया दल
पूर्व मंत्री जलेश्वर महतो ने सुनाए रोचक किस्से...
सिद्धांतों से समझौता नहीं करने वाली शख्सियत। विचारधारा और उसूल के पक्के। उनके राजनीतिक कैरियर में कई बार ऐसे दौर आए, जब उनके सिद्धांतों के आड़े पार्टियों की विचारधारा आई। उन्होंने सिद्धांतों को तरजीह दी। कभी नहीं सोचा कि वे उस पार्टी के किस ऊंचे ओहदे में हैं और इनका उन्हें राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इसके बावजूद उन्होंने कभी पलभर देर नहीं की और पार्टी छोड़ दी। वे पहले झामुमो में रहे। कुछ नीतियां उन्हें रास नहीं आईं। उन्होंने कृष्णा मार्डी के साथ अलग समूह बना लिया। वहां भी कुछ नेताओं के साथ सिद्धांतों को टकराव हुआ, तो समता पार्टी से जुड़ गए। बाद में वे भाजपा में आ गए।
भाजपा की कुछ नीतियां उन्हें बेहद नागवर गुजर रही थी। इसके कारण वे आजसू से जुड़ गए। वे स्वयं एक संगठन थे। वे पार्टियाें से बेहद ऊपर थे। वे चुनाव पार्टियों के बूते नहीं, अपने चेहरे के दम पर लड़ते और जीतते थे। जिस प्रकार का व्यक्तित्व बिनोद बाबू में था, वहीं जादू राजकिशोर बाबू में दिखा। आज अगर झारखंड अलग राज्य है तो इसमें राजकिशोर बाबू के संघर्ष व जिद को नकारा नहीं जा सकता। झारखंड आंदोलन के दौरान जैक का झुनझुना थमाया गया था। राजकिशोर को यह रास नहीं आया। उनकी जिद थी-हमें जैक नहीं, राज्य चाहिए। उन्होंने झामुमो को सांगठनिक तौर पर तैयार किया और अंत में लड़कर झारखंड राज्य हासिल किया।
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