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Monday, May 25, 2020

संविदा पर कार्यरत कर्मियों के नियमितीकरण का मामला अंतिम निर्णय के लिए लटका

राज्य के सचिवालयों और विभिन्न कार्यालयों में वर्षों से संविदा पर कार्यरत कर्मियों के नियमितीकरण का मामला अभी भी अंतिम निर्णय के लिए लटका पड़ा है। इस बीच राज्य के विभिन्न जेलों में संविदा पर कार्यरत कर्मियों के नियमितीकरण की दिशा में बढ़ा कदम भी थम गया है। गृह विभाग द्वारा इन कर्मियों के नियमितीकरण के लिए बुलायी गयी बैठक में सहमति तो बनी लेकिन पिछले तीन महीने से इस पर आदेश जारी नहीं हो रहा है। इससे लाभान्वित होनेवाले जेल के संविदाकर्मियों की संख्या लगभग 183 है।
इस कारण दूसरे अन्य विभागों या कार्यालयों में कार्यरत संविदाकर्मियों का मामला भी उसी में उलझ कर रह गया है। जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिवहन विभाग के संविदाकर्मी नरेंद्र तिवारी व अन्य बनाम राज्य सरकार द्वारा दिये गये फैसले के बाद राज्य में कार्यरत संविदाकर्मियों की सेवा नियमित करनी थी। इसको लेकर पिछली सरकार द्वारा नियमावली का गठन भी किया गया। सक्षम प्राधिकार और स्वीकृत पद के विरुद्ध 10 वर्ष से कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमित करना, नियमावली की प्रमुख शर्त है। नियमावली की इन शर्तों के कारण राज्य में अब तक दो ही कर्मियों की सेवा नियमित हो सकी।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी नहीं सुलझा मामला
सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के आलोक में जेल में कार्यरत संविदाकर्मी हाईकोर्ट चले गये। हाईकोर्ट ने सरकार से नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश दिया। तत्कालीन गृह सचिव सुखदेव सिंह के समय बैठक भी हुई, जिसमें स्वीकृत पद की जगह रिक्त पद के विरुद्ध नियमित करने पर सहमति बनी, लेकिन आदेश जारी नहीं हुआ। स्वीकृत पद और रिक्त पद का मामला यह है कि विभागों में टंकक, एलडीसी, यूडीसी या अन्य के स्वीकृत पद हैं जबकि संविदा पर कार्यरत अधिकतर कर्मी या तो कंप्यूटर ऑपरेटर या अन्य पदों पर कार्यरत हैं। ऐसे में स्वीकृत पद चाहे टंकक, एलडीसी या अन्य के हों, उसके विरुद्ध कंप्यूटर ऑपरेटर या अन्य कार्य कर रहे संविदाकर्मियों को नियमित किया जाए।
नरेंद्र तिवारी का मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन
इधर नरेंद्र तिवारी व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार द्वारा नियमितीकरण के लिए बनायी गयी नियमावली को हाईकोर्ट में चैलेंज किया है। उस पर राज्य सरकार से शपथ पत्र भी दायर करने को कहा गया है।



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The matter of regularization of contract workers hangs for final decision


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