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Thursday, May 28, 2020

छत्तीसगढ़ की फसलों को खतरा बॉर्डर तक पहुंच गया टिड्डी दल

छत्तीसगढ़ की सरहद के नजदीक बालाघाट जिले के कटोरी गांव और आसपास लाखों टिडि्डयों का दल पहुंच चुका है। बताते हैं कि इसके कल छत्तीसगढ़ पहुंचने की संभावना है। इसलिए राजनांदगांव के साथ ही कवर्धा जिले व आसपास के इलाकों खैरागढ़, डोंगरगढ़, छुईखदान को भी अलर्टकर दिया गया है। गावों में मुनादी करवाई जा रही है। यह भी माना जा रहा है हवा के रूट की वजह से धीरे-धीरे इसकी दिशा बदल रही है।
शासन को अंदेशा है कि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा से लगी तहसीलों में इनका आक्रमण हो सकता है। इस वजह से अफसरों से कहा गया है कि वे टिड्‌डी दल को नियंत्रित करने के लिए दवा के छिड़काव का इंतजाम करें। इसके लिए कीटनाशक, अग्निशमन यंत्र, पानी टैंकर की व्यवस्था कर लें ताकि आपात स्थिति में टिडि्डयों से निपटा जा सके। प्रमुख सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी ने कलेक्टरों से कहा है कि कि वे मैदानी स्तर पर निगरानी के लिए अफसरों को तैनात करें। किसानों को तक टिड्‌डी की जानकारी पहुंचवाएं। आक्रमण की स्थिति में तत्काल कंट्रोल रूम को सूचित करें और दवा का छिड़काव करें। मालूम हो कि केंद्र सरकार के कृषि व कल्याण मंत्रालय ने टिड्डियों के बारे में 25 मई को ही राज्य सरकार को सूचना दे दी थी। बुधवार को रायपुर के प्रभारी कलेक्टर सौरभ सिंह ने इनके रायपुर जिले में भी आने की संभावना जताई थी।
टिड्डी दल 1 दिन में 35 हजार लोगों के बराबर का खाना खा जाते हैं
टिड्डी दल के बारे में टीम एक्जाम फार यू की माने तो कई रोचक बातें सामने आ रही है कि एक वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला एक टिड्डी दल एक दिन में 35 हजार लोगों के बराबर का खाना खा सकते हैं। आमतौर पर टिड्डी दल हर तरह के पेड़-पौधें, फसलें खा जाते हैं। बड़े पेड़ों की भी कोमल पत्तियों और टहनियों को वे खा जाते हैं। यूं तो टिड्डी दल हर प्रकार की हरी चीज को साफ कर कर देते हैं। लेकिन, ऑक, नीम, धतूरा, शीशम और अंजीर को वे नहीं खाते हैं।

  • एक सामान्य टिड्डी दल में पंद्रह करोड़ टिड्डे हो सकते हैं। हवा अगर अनुकूल हो तो वे 150 किलोमीटर तक की यात्रा एक दिन में कर सकते हैं।
  • बालुई जमीन को टिड्डी दल अपनी ब्रीडिंग कॉलोनी में बदल देते हैं। मादा टिड्डा जमीन में दो से चार इंच का छेद करके उसमें अंडे देती है। मेटिंग के आठ से 24 घंटों बाद मादा अंडे देने की शुरुआत कर देती है। अपने जीवन भर में एक टिड्डा पांच सौ अंडे देती है।
  • जब ये टिड्डी दल अपने पूरे जोर पर होते हैं तो अकाल तक का खतरा पैदा कर देते हैं। वर्ष 1926 से 31 के बीच भारत के अलग-अलग हिस्सों में लगातार टिड्डी दलों के हमले हुए।कहा जाता है कि उस समय तक टिड्डी दल फसलों को चट करने के लिए आसाम तक पहुंच गए।
  • ये शहरी क्षेत्रों में भी तमाम प्रकार की परेशानियां पैदा कर सकते हैं। घरों, बिस्तरों और रसोईघरों में वे घुस जाते हैं। बहुत सारे लोग इसके प्रति एलर्जिक भी होते हैं।
  • टिड्डी दलों की वजह से रेलवे लाइन पर घर्षण कम हो जाता है और इससे ट्रेन के फिसलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए ट्रेनों तक को रोकना पड़ता है।
  • वे अगर जलाशयों में गिर जाते हैं तो पानी भी पीने योग्य नहीं रह जाता।
  • एक विशालकाय टिड्डी दल दस वर्ग किलोमीटर तक में फैले हो सकते हैं। इस तरह के दल में तीन सौ टन तक टिड्डे हो सकते हैं। अभी तक ऐसे झुंड भी रिकार्ड किए गए हैं जो 300 वर्ग किलोमीटर तक में फैले थे। वे सूरज की रोशनी को रोक लेने वाले किसी काले-मनहूस बादल की तरह किसानों की आशाओं पर मंडराते हैं।
  • आमतौर पर टिड्डा तीन से पांच महीने तक जीता है। हालांकि, यह भी मौसम के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है। टिड्डा का जीवन चक्र तीन अलग-अलग हिस्सों में यानी अंडा फिर होपर या निंफ और वयस्क में बांटा जा सकता है।
  • टिड्डी दलों का हमला रोकने के लिए देश में बहुत पहले से कृषि मंत्रालय का लोकस्ट वार्निंग आर्गेनाइजेशन काम करता रहा है। इसके केन्द्र राजस्थान में जगह-जगह पर बनाए गए हैं। जहां पर टिड्डी दलों की आमद और उनकी ब्रीडिंग पर निगाह रखी जाती है।

इस बार आक्रामकक्यों हुईं टिडि्डयां?
बताते हैं कि इस बार यूनाइटेड नेशन ने भी पहले ही आशंका जता दी थी कि टिडि्डयां इस बार ज्यादा आक्रामक होंगी। जानकारों की माने तो करीब ढाई दशक बाद टिड्डियां जोरदार तरीके से हमलावर हैं। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, को नुकसान पहुंचाते हुए यह छत्तीसगढ़ की ओर बढ़ रही हैं।पहली दफे टिड्डियों ने जयपुर शहर में डेरा जमाया। जानकार टिड्डियों को वैश्विक समस्या मानते हैं। इनसे अरब सागर के आसपास अफ्रीका, अरब और भारतीय उप महाद्वीप के देश हमलों से जूझते रहते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि क्लाइमेट क्राइसिस की वजह से दो साल पहले चक्रवाती तूफान आने से अरब के इलाकों में पानी गिरा। इस कारण रेतीली जमीन पर अधिक नमी पैदा बोने से टिड्डियां बड़ी संख्या में उत्पन्न हुईं। इनकी जनसंख्या कम करने के लिए जहां ये अंडे देती हैं, वहां पर दवाएं छिड़की जाती हैं। इस बार कोरोना संकट के चलते ईरान का पूरा अमला उससे निपटने में ही जुटा हुआ था। इसके चलते इनपर छिड़काव न होने से समस्या बढ़ गई।
भूपेश बोले- बचाव के सभी उपाय करें
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी टिड्डी दल के संभावित हमले से चिंतित हैं। उन्होंने फसलों के बचाने के लिए समय पूर्व सभी आवश्यक तैयारी करने कृषि, उद्यानिकी, वन विभाग के अफसरों व कलेक्टरों से कहा है। उन्होंने कहा है कि टिड्डी दल प्रदेश में पहुंचने के पहले ही उसे भगाने के लिए सभी उपाय कर लें। मुख्यमंत्री ने सरहदी जिलों में टिड्डी दल के घुसने एवं उनके उड़ान भरने की दिशा पर नजर रखने भी कहा है। केन्द्रीय एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन केन्द्र रायपुर से प्राप्त जानकारी के अनुसार टिड्डी दल हवा की बहाव की दिशा में आगे बढ़ता है। रायसेन से खण्डवा होते हुए मोरसी अमरावती महाराष्ट्र से 27 मई को ग्राम टेंमनी तालुका तुमसर जिला भंडारा के आस पास पहुंच चुका है।28 मई को टिड्डी दल तुमसर महाराष्ट्र से खैरलांजी बालाघाट की ओर बढ़ रहा है। इससे मुंगेली, बिलासपुर, गौरेला पेड्रा मरवाही, कोरिया, सूरजपुर एवं बलरामपुर जिले की सीमाएं मध्यप्रदेश से लगी होने के कारण संवेदनशील है। पीसीसीएफ ने डीएफओ एवं मुख्य वन संरक्षकों को टिड्डी दल की सत्त निगरानी करने तथा आक्रमण होने पर तुरंत सूचना देने, नियंत्रण करने कहा है।



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Grasshopper teams in Chhattisgarh's crops have reached the danger border


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