समाज में फैली मृत्युभोज जैसी कुप्रथा का जीवन भर विरोध किया। जिंदा रहते हुए मृत्यु भोज जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ रहे और जब दुनिया से विदा हुए तो परिजनों ने भी उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए मृत्यु भोज नहीं दिया। समाज द्वारा ओढ़ी गई इस रूढ़िवादी परंपरा की खिलाफत सालों से कुछ लोग करते हुए आए हैं। जिले में सैकड़ों की संख्या में लोग हैं जो न मृत्यु भाेज में भोजन करते हैं और न ही इस तरह भोज आयोजित करने की सलाह देते हैं। इनमें कुछ ऐसे वर्ग के लोग भी हैं जिन्हें समाज में प्रभावशाली माना जाता है। हालांकि ये लोग अब समाज को रास्ता दिखाते हुए जगत से विदाई ले चुके हैं, लेकिन समाज की इस रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ जीवित रहे तब तक लोगों को जागरूक किया और अपने परिवार को संदेश दिया कि जब वे दुनिया से जाएं ताे परिजन इस परंपरा का निर्वहन न करें। परिजनों ने भी उनको सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए मृत्युभोज नहीं किया।
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ससुर ने मृत्यु भोज नहीं करने की दी थी सीख
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता का कहना है कि उनके ससुर गुप्तेश्वर प्रसाद गुप्ता (टुन्नी बाबू) मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों के विरोधी थे। जब तक वे जिंदा रहे मृत्यु भोज के खिलाफ समाज को जागरूक करते रहे। उन्होंने हमें भी मृत्यु भोज न करने की सीख दी थी। परिवार ने हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार कर्मकांड ही किया। मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया। परिवार के इस निर्णय का समाज ने आगे बढ़कर साथ दिया। तय किया कि मृत्यु भोज में जो राशि खर्च होगी, उसे समाज के हित और गरीबों के कल्याण में खर्च करेंगे। उनके निधन पर मृत्यु भोज नहीं दिया।
मृत्यु भोज मेंखाने वालों को खुशी नहीं मिलती
कपड़ा व्यापारी नवीन केशरी का कहना है कि उनके पिताजी पुरुषोत्तम दास गुप्ता मृत्यु भोज के खिलाफ थे। उनका कहना था कि समाज से इस तरह की कुप्रथा को खत्म करना चाहिए। यह समाज में फैली रूढ़िवादी परंपरा है। मृत्यु भोज में खाने वाले काे खुशी मिलती है और न ही खिलाने वाले। उनका जब निधन हुआ तो परिवार और समाज ने एकमत से मृत्यु भोज नहीं करने का निर्णय लिया। मृत्यु भोज में जो राशि हम खर्च करते हैं उससे गरीबों की मदद करनी चाहिए। पिता जी की इस सीख को आगे बढ़ाने के लिए समाज ने साथ दिया और मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया। सादगी से कार्यक्रम में परिवार, रिश्तेदार व करीबी लोग शामिल हुए।
चाची करतीं थी विरोध, नहीं किया मृत्यु भोज
सदर रोड निवासी संजय रेडियो के संचालक विशेष गुप्ता का कहना है कि उनकी चाची मीना गुप्ता हमेशा से मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों की खिलाफत करती रही हैं। समाज ने भी इस कुप्रथा पर रोक लगा रखी है। चाची का निधन हुआ तो हमने मृत्यु भोज नहीं करने का निर्णय लिया। समाज इस निर्णय के लिए साथ खड़ा था। जो शोक पत्र छपा था उसमें हमने बकायदे लिखवा दिया था कि मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया जाएगा। सादगी के साथ पूरा कार्यक्रम हुआ। मृत्यु भोज बंद होना चाहिए। यह रूढ़िवादी परंपरा है जिसे बंद करना चाहिए।
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