चातुर्मास के लिए एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में गुरुवार को साध्वीवृंदों का मंगल प्रवेश हुआ। यह पहली ऐसी चातुर्मासिक मंगल प्रवेश यात्रा रही, जिसमें बैंड-बाजे, हाथी-घोड़े नहीं थे, भक्त मंडलों की भीड़ नहीं देखी गई। प्रचार-प्रसार प्रभारी तरुण कोचर ने बताया कि धर्मसभा में केवल मास्क लगाकर श्रद्धालुओं को हैंडवाॅश के बाद प्रवेश दिया गया। 4 जुलाई से प्रारंभ सभी चातुर्मासिक कार्यक्रमों को श्रद्धालु अपने घर पर भी फेसबुक पर चातुर्मास समिति रायपुर के माध्यम से देख सकते हैं।
मंगल प्रवेश यात्रा गुरुवार सुबह 7.30 बजे सदर बाजार स्थित ऋषभदेव जैन मंदिर से शुरू हुई। इसमें आगे-आगे फहरती हुई धर्म ध्वजाएं अगले क्रम पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए चल रही थीं। सिर पर मंगल कलश धारण किए हुए पांच श्राविकाएं, मध्य में मंडल प्रमुखा साध्वी सम्यक दर्शनाश्रीजी सहित साध्वी मंडल और हाथों में धर्म ध्वजाएं लिए हुए श्वेतस्त्रधारी श्रावक गण पंक्तिबद्ध चल रहे थे। सभी श्रद्धालु मास्क पहन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रवेश यात्रा में शामिल हुए। मार्ग में श्रद्धालुओं ने प्रवेश यात्रा का स्वागत किया। सदरबाजार में महेंद्र कुमार तरुण कुमार कोचर परिवार ने गहुली कर साध्वीवृंदों को बधाया। मंगल प्रवेश यात्रा के जैन दादाबाड़ी पहुंचने के उपरांत साध्वी मंडल की ओर से जिनेश्वर परमात्मा के मंदिर व दादाबाड़ी में दर्शन-वंदन किया गया।
इस चातुर्मास पंचम गति को पाने करें पुरूषार्थः साध्वी सम्यकदर्शनाश्री
दादाबाड़ी प्रांगण के स्थायी पंडाल में हुई संक्षिप्त धर्मसभा में साध्वी सम्यक दर्शनाश्रीजी ने कहा कि इस कोरोना काल में हम जितना शासन के नियमों का पालन कर रहे हैं, क्या वैसा ही पालन हम जिन शासन के नियमों का करते हैं, यह आत्मचिंतन करें। शासन के नियम राज आज्ञा है तो जिन शासन के नियमों का पालन जिन आज्ञा है। हमें राज आज्ञा के साथ साथ जिन आज्ञा का भी पालन करना है। इस वर्ष चातुर्मास पांच महीनों का है, अर्थात् हमें इस चातुर्मास काल में एकाकी होकर पंचम गति यानि मोक्ष को पाने की आकांक्षा से साधना-आराधना और धर्म पुरूषार्थ प्रारंभ करना है। चातुर्मास हमें कसायों की चैकड़ी पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। सामायिक ऐसी करें कि पुनिया श्रावक की तरह परमात्मा के प्रति समर्पण भाव आ जाए। हमें इन पांच माह में भगवान महावीर के एक-एक शब्दों को आत्मसात करना है, यही साधना और आराधना भी है। हमें स्वयं में सुरसा जैसी श्रद्धा और पुनिया जैसी सामायिक में रमने की पात्रता जगानी होगी। श्रावक वही है जो श्रद्धा और विवेक के साथ धर्म क्रियाएं करे। श्रद्धा के साथ विवेकपूर्वक क्रिया करने वाला श्रावक है। इस चातुर्मास हमें अपने श्रावकपना को बनाए रखना है। अनुशासन के साथ हमें जैनत्व की आराधना करनी है। शांतिपूर्ण जीवन जीने की कला सीखनी है। साध्वीश्री ने आगे कहा- सुविधा मिले तो धर्म कर लो, सुविधा ना मिले तो धर्म छोड़ दे, यह साधना-आराधना नहीं है।
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