काेराेना के संकट काे देखते हुए विश्वविद्यालयाें ने परीक्षा के नियम बनाए। उद्देश्य था कि काॅलेज छात्राें काे सुविधा हाेगी। लेकिन इसके उलट इन नियमाें ने छात्राें की ही परेशानी बढ़ा दी है। ना परीक्षा आसान हुई, ना ही संक्रमण राेकने का प्रयास सफल दिख रहा है।
नए नियमों से छात्राें के साथ डाक विभाग की परीक्षा हाे रही है। अभी छात्राें काे प्रश्न पत्र डाउनलाेड करना है, कॉपियाें का इंतजाम करना है। उसके बाद स्पीड पाेस्ट या काॅलेज तक पहुंचाना है। समय सीमा की बाध्यता ना हाेने से परीक्षा की गाेपनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि काेराेना संकट के बीच ऐसी परीक्षा किसके लिए ली जा रही है, जबकि यूजीसी ने इसके अन्य विकल्प भी बताए थे।
3 ऑप्शन दिये थे यूजीसी ने लेकिन चुना गया ऐसा जिससे सभी हो रहे परेशान
- इनमें पहला ऑप्शन पिछले साल मिले नंबरों के आधार पर इस साल नंबर देकर जनरल प्रमोशन करने का था।
- दूसरे विकल्प में कॉलेजों के इंटरनल टेस्ट में मिले नंबरों के आधार पर ओवरआल रेटिंग या नंबर देने का था।
- तीसरा ऑप्शन ऑनलाइन एग्जाम लेने का था।
सबसे अच्छा और बेहतर आप्शन यह था कि पिछले वर्ष के रिजल्ट के आधार पर नंबर जारी किये जायें। अभी यूनिवर्सिटियां ऑनलाइन एग्जाम का जो पैटर्न अपना रही हैं इससे साल भर मेहनत करने वाले छात्र और पूरे साल कॉलेज नहीं जाने वाले छात्र एक बराबर हो गये हैं। यही नहीं उत्तरपुस्तिका और प्रश्न पत्र लाने और फिर इसे कोरियर करने के दौरान कोरोना संक्रमण का खतरा भी बना हुआ है।
दोनों प्रमुख विवि में यह व्यवस्था
बस्तर यूनिवर्सिटी में परीक्षा के चार दिन के भीतर कॉपियां स्पीड पोस्ट से भेजनी हैं या किसी भी जरिए कॉलेज पहुंचानी हैं।
पं. रविशंकर विवि में सारे पेपर खत्म होने के बाद 5 दिन के अंदर कॉपियां एक साथ ईमेल से भेजनी है या स्पीड पोस्ट करनी है।
रविवि ने बुधवार को नियम में बदलाव किया है। इसके मुताबिक अब छात्र कॉलेज में भी आंसर शीट जमा कर सकते हैं।
परीक्षा ने ऐसे बिगाड़ा गणित: पहले फीस जमा की, अब 1500 और खर्च
इस वर्ष कोरोना के चलते काॅलेज की परीक्षा पद्घति बदली गई है। जिसमें पहले से परीक्षा फीस भर चुके छात्रों को अतिरिक्त खर्च तो उठाना पड़ रहा है। छात्र को जिस विषय की परीक्षा तिथि नियत है उस दिन उसी विषय का प्रश्नपत्र डाउनलोड कर प्रिंट कराना है।
औसतन एक प्रश्नपत्र में 3 से 6 पेज होते हैं, प्रति पेज 10 रुपए दर से यहां 30 से 60 रुपए चुकाने होते हैं। उत्तरपुस्तिका सेट बाजार में 50 रुपए में बिक रहा है। बड़ा लिफाफा लेना होता है जो 15 से 20 रुपए में मिल रहा है।
1200 की चपत छात्रों को लग जाएगी 8 पेपर हुए तो कुरियर/स्पीडपोस्ट/रजिस्ट्री करने में 30 से 50 रुपए खर्च आता है। एक पेपर देने औसतन 150 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
बीकाॅम तथा बीए के 8 पेपर होते हैं। बीएससी में 9 पेपर होते हैं। एमए, एमकाम तथा एमएससी में 4 से 5 पेपर होते हैं।
छात्रों ने परीक्षा फीस के नाम पर 1800 तक दिए
बस्तर विश्वविद्यालय के मुताबिक कॉलेज के नियमित छात्रों में केवल फाइनल के छात्रों को इस पद्घति से परीक्षा देनी है जबकि सभी स्वाध्यायी छात्रों को इसी पद्धति से परीक्षा देनी है। परीक्षा फीस के नाम छात्रों से पहले 1500 से 1800 रुपए लिए गए थे। अब इस नई पद्घति से परीक्षा दिलाने छात्रों को 1200 से 1500 रुपए तक खर्च आ रहा है।
दूर-दराज रहने वालों के सामने अधिक संकट
ग्रामीण क्षेत्र के छात्र हास्टल-किराए के मकानों में रह पढ़ाई करते थे जो कालेज बंद होने के कारण वापस गांव लौट चुके हैं। गांव में इंटरनेट समस्या के अलावा पोस्ट कराने सुविधा नहीं होने से दोनों कामों के लिए बार बार शहर आना पड़ रहा है। कोरोना के कारण यात्री बसें नहीं चलने से छात्रों को आना जाने में और ज्यादा परेशानी तथा खर्च वहन करना पड़ रहा है।
ये हैं नए नियम और उससे हाेने वाली परेशानी
पेपर वाट्सएप या वेबसाइट पर मिलेंगे
समस्या- समय से नहीं मिल रहे। छात्र काॅलेज तक दाैड़ रहे। प्राध्यापकों काे फाेन लगा रहे। गोपनीयता नहीं बची।
उत्तर पुस्तिका खुद बनानी है।
समस्या- स्टेशनरी खरीदनी पड़ रही। एक काॅपी का खर्च करीब 40 रुपए अा रहा। हर पेपर में अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा।
उत्तर घर पर बैठकर लिखना
समस्या- असीमित समय है। पुस्तक, गाइड से बैठकर छात्र खुद या परिजन से नकल करवा रहे। निगरानी नहीं हाे पा रही।
सभी पेपर हाेने के बाद 5 दिन में उत्तरपुस्तिकाएं लिफाफा में भरकर जमा करना
समस्या- स्पीड पाेस्ट पर एक काॅपी का खर्च करीब 50 रुपए आएगा। 5 पेपर हैं ताे 250 रुपए ज्यादा देने हाेंगे। यानी प्रत्येक काे यह अतिरिक्त खर्च करना हाेगा। पाेस्ट ऑफिस में भीड़ लगेगी। साेशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं हाे पाएगा।
यह भी थे विकल्प
परीक्षा नीट की तरह साेशल डिस्टेसिंग से करा लेते। काॅपियां काॅलेज से उपलब्ध कराते। काॅपियां काॅलेज में जमा करा लेते।
एक्सपर्ट व्यू : जनरल प्रमोशन देना था, छात्रों को कोई दिक्कत ही नहीं होती
यूनिवर्सिटी के पास कोरोना काल में एग्जाम करवाने के कई ऑप्शन थे। इनमें सबसे आसान और सुरक्षित तरीका पिछले साल के नंबरों के हिसाब से इस साल नंबर देकर जनरल प्रमोशन का था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके पीछे का एक बड़ा कारण यह है कि राज्य में अभी भी विश्वविद्यालय अपने विवेक से काम नहीं कर रहे हैं वो रविवि के निर्णयों का पालन कर रहे हैं। ऐसे में रविवि में जो निर्णय होते हैं उन निर्णयों को तत्काल दूसरे यूनिवर्सिटी के कुलपति अपने यहां लागू कर लेते हैं। इसके पीछे का बड़ा कारण यह है कि ऐसा करने से गलतियां या अव्यवस्था होने पर ठीकरा रविवि पर फोड़ना आसान होता है। जनरल प्रमोशन न देने के पीछे का एक कारण यह भी है कि यदि बिना परीक्षा लिये ही जनरल प्रमोशन दे दिये जाते तो छात्र परीक्षा फीस वापसी का दबाव बनाते। अभी ज्यादातर विश्वविद्यालय परीक्षा फीस और छात्रों से मिलने वाले पैसों के दम पर ही चल रही हैं। ऐसे में ऑनलाइन परीक्षा लेकर उत्तरपुस्तिकाओं को चेक करवाने का पूरा प्रपंच रचा जा रहा है। अभी छात्र अपने घरों से उत्तरपुस्तिका में उत्तर लिखकर लाएंगे। ऐसे में सौ फीसदी छात्र पास होंगे और इनमें से ज्यादातर को 99 प्रतिशत अंक मिलेंगे जो कहीं से भी उचित नहीं है। यह व्यावहारिक तौर पर भी सही नहीं है।
- जैसा कि बस्तर विवि के सीनियर प्रोफेसर ने बताया
हल निकालने के लिए विवि से चर्चा करेंगे: पटेल
"शासन ने ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीके से परीक्षा की व्यवस्था की ताकि नेटवर्क की दिक्कतों के कारण गांव में बैठा छात्र भी परीक्षा से वंचित न हो। अगर कहीं व्यवहारिक दिक्कत आ रही है तो चर्चा कर हल निकालने की कोशिश करेंगे।"
उमेश पटेल, उच्च शिक्षा मंत्री, छग
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