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Sunday, September 13, 2020

नवरात्रि के लिए इस बार एक माह करना होगा इंतजार

हर साल पितृ पक्ष के ख़त्म होने के अगले दिन से नवरात्र शुरू हो जाती थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। क्योंकि इस बार पितृ पक्ष 17 सितंबर को ख़त्म होते ही 18 सितंबर से अधिमास या अधिकमास लग रहा है। इसी अधिमास के चलते पितृ पक्ष और नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर आ रहा है। ऐसा संयोग 165 साल के बाद आ रहा है। जब अश्विन मास में मलमास लगेगा और एक महीने के बाद नवरात्र शुरू होंगे। इस साल अधिमास 18 सितम्बर से शुरू होकर 16 अक्टूबर तक चलेगा और इसके अगले दिन से यानि 17 अक्टूबर से नवरात्र शुरू होगी।

अधिमास का असर... सितंबर बाद सभी त्योहार 10-15 दिन की देरी से
इस वर्ष होली के बाद के सारे त्योहार कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए। लोगों ने पर्व मनाया, लेकिन घर के भीतर रहकर। श्रद्धा-आस्था में कोई कमी नहीं रही, लेकिन एक-दूसरे के साथ मिलकर उत्सव का जो आनंद उठाते थे, वह नहीं मिल सका। हालांकि, आगे आ रहे अधिमास की वजह से त्योहारों को लेकर उम्मीद भी जागी है।

वो इसलिए क्योंकि अधिमास की वजह से सितंबर बाद पड़ने वाले सारे त्योहार पिछले साल की तुलना में 10-15 दिन की देरी से मनाए जाएंगे। दरअसल, विक्रम संवत् 2077 में दो अश्विन मास की वजह से अधिमास का संयोग है। इसीलिए नवरात्र, दशहरा-दीपावली जैसे साल के सबसे बड़े त्योहार पिछले साल की तुलना में इस बार देरी से मनाए जाएंगे।

19 साल में एक बार ही 2 अश्विन मास एक साथ
ज्योतिषाचार्य पं. राघवेंद्र पांडेय ने बताया कि इस वर्ष 2020 में अश्विन मास अधिकमास होगा। इसीलिए दो अश्विन रहेंगे। अधिकमास 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके कारण व्रत-पर्वों में 15 दिन का अंतर आ रहा है। यानी जनवरी से अगस्त तक आने वाले त्योहार करीब 10 दिन पहले और सितंबर से दिसंबर तक होने वाले त्योहार 10 से 15 दिन की देरी से आएंगे। 2 आश्विन मास वाला अधिकमास का योग 19 साल बाद बन रहा है। इससे पहले वर्ष 2001 में अश्विन में अधिकमास का योग बना था।

अब 5 पर्व हैं अगले तीन महीने में लेकिन इन्हें भी मनाने के लिए छूट मिलने की संभावना कम
इस वर्ष के अधिकांश त्यौहार तो कोरोना के कारण उत्साह से नहीं मनाए जा सके हैं। आने वाले चार माह में यानि दिसंबर तक नवरात्र, दशहरा, दीपावली, छठ, क्रिसमस जैसे पर्व पड़ेंगे पर कोरोना को देखते हुए इन त्यौहारों को भी मनाने की छूट मिलेगी इसकी संभावना कम दिख रही है।

इसलिए कहते हैं पुरुषोत्तम मास...
पं. अनिल शर्मा के अनुसार इस अधिमास का कोई स्वामी न होने से देवताओं ने इसे अशुद्ध माना और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य कैसे करें, इस संशय में पड़ गए। तब वे भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने कहा कि आज से मैं इस अधिमास को अपना नाम देता हूं। जब से पुरुषोत्तम मास के दौरान जप, तप, दान से पुण्य प्राप्ति होते हैं। श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन व विष्णु की उपासना की जाती है। कथा पढ़ने-सुनने से भी लाभ होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं।



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