नीरज शर्मा| जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांवों में कोयलीबेड़ा विकासखंड के ग्राम महला की गिनती होती थी। अंदरुनी क्षेत्रों में महला से भी अधिक संवेदनशील और भी गांव थे। लेकिन वर्ष 2009 में नक्सल आतंक के चलते उजड़ कर वीरान होने वाला यह जिले का एकमात्र गांव था।
इस गांव की पूरी आबादी ने पखांजूर में शरण ले ली थी। गांव में अपने घरों तथा खेतों के मालिक इस गांव के लोग पखांजूर में शरण लेने के बाद मजदूर बन गए थे। वर्ष 2018 में महला में बीएसएफ ने कैंप खोला जिसके बाद गांव में नक्सल आतंक कमजोर पड़ा जिसके बाद पखांजूर में शरणार्थी बनकर रहने वाले ग्रामीणों का अपने गांव लौटने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तो गांव का साप्ताहिक बाजार भी भरने लगा है। वर्ष 2009 में जब क्षेत्र में नक्सली आंतक चरम पर था तब 10 दिनों में महला गांव के चार लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी। इस घटना का गांव में ऐसा आंतक छाया कि पूरा का पूरा गांव रातोरात खाली हो गया और यहां के सभी ग्रामीणों ने पखांजूर में शरण ले ली थी। इस गांव के ग्रामीणों ने सोचना तक बंद कर दिया था कि वे कभी वापस अपने गांव लौट पाएंगे क्योंकि वहां हालात दिन प्रति दिन बिगड़ते जा रहे थे।
खेती बाड़ी शुरू कर चुके हैं महला के ग्रामीण
एक दशक बाद महला में बीएसएफ कैम्प शुरू किया गया जिसका नक्सलियों ने बहुत विरोध किया, कई वारदातें भी की लेकिन बीएसएफ पीछे नहीं हटी। धीरे धीरे महला में नक्सल आतंक कमजोर पड़ने लगा जिसके बाद एक एक कर ग्रामीण महला लौटने लगे। अब तक आधे से अधिक परिवार अपने गांव महला लौट चुके हैं तथा खेती बाड़ी शुरू कर चुके हैं।
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