मारवाड़ी श्मशानघाट और देवेंद्र नगर मुक्तिधाम में वुडन बेस्ड क्रिमेशन सिस्टम के जरिए अंतिम संस्कार शुरू हो गया है। इसमें लकड़ी की खपत तीन गुना तक कम हो जाती है। यानी सामान्य तौर पर एक व्यक्ति के दाह संस्कार में जहां साढ़े तीन क्विंटल लकड़ी की जरूरत पड़ती है तो वहीं वुडन बेस्ड क्रिमेशन में महज 1.2 क्विंटल। इससे प्रदूषण भी कम होता है। 3 माह में इस तकनीक के जरिए करीब 150 लोगों का अंतिम संस्कार हो चुका है।
दरअसल, नगर निगम ने इससे पहले लाखों रुपए खर्च कर मारवाड़ी श्मशानघाट के सामने इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह बनवाया था। इसे बनवाने का उद्देश्य यही था कि अंतिम संस्कार से होने वाला प्रदूषण कम किया जा सके। पर लोगों ने इस सिस्टम को पसंद नहीं किया क्योंकि इसमें कपाल क्रिया समेत अंतिम क्रिया कर्म से जुड़े दूसरे अनुष्ठान करवाने में अड़चनें आ रहीं थीं। सालभर में यहां बमुश्किल 4 लोगों का अंतिम संस्कार हुआ और इसी में 55 हजार रुपए की बिजली जल गई। तभी से यह सिस्टम बंद पड़ा है।
100 फीट ऊंची चिमनीसे निकलता है धुंआ
अंतिम संस्कार के वक्त निकलने वाला धुंआ 100 फीट ऊंची चिमनी से वातावरण में जाता है। यह पूरी तरह ढंका होता है। इस वजह से राख भी नहीं उड़ती है। पानी की वजह से सिर्फ गीला धुआं ही हवा में जाता है। रायपुर शहर में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है। भीषण गर्मी के मौसम में इको फ्रेंडली शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने आए लोग आसानी से यहां खड़े रह सकते हैं।
2 सिस्टम बनाने में 99 लाख खर्च
स्मार्ट सिटी ने राजधानी के मारवाड़ी और देवेंद्र नगर मुक्तिधाम में दो जगह इको फ्रेंडली शवदाह गृह सिस्टम बनाया है। दोनों जगह ये सिस्टम बनाने में 99 लाख रुपए का खर्च आया है। इसमें 35 लाख रुपए मशीन लगाने और 20 लाख रुपए का खर्च सिविल वर्क जैसे टीन शेड चिमनी और पानी का टेंक वगैरह में आया है।
चेंबर में जलता है शव इसीलिए कम निकलता है धुंआ
इस तकनीक के तहत बनाए सिस्टम में चेंबर में शव जलता है। इसका धुंआ और आंच आसपास के क्षेत्र में नहीं आती है। स्मार्ट सिटी ने फिलहाल दो जगहों पर ये सेटअप लगाया है। एक जगह पर दस शवों का अंतिम संस्कार किया जा सकता है। वहीं तीन दिन तक अस्थियां और राख रखने के लिए दस ट्रे की भी व्यवस्था बनाई है। स्मार्ट सिटी शहर के अन्य मुक्तिधामों में भी ये सिस्टम जल्द लगा सकता है
अस्थियां रखने देते हैं नंबर
निगम के बाद अब स्मार्ट सिटी ने अंतिम संस्कार काे इकोफ्रेंडली बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसमें राख और अस्थियों के लिए ट्रे सिस्टम है। इसमें जिस शख्स का अंतिम संस्कार किया जाता है, उसे एक नंबर भी दिया जाता है। परिजन इसी नंबर के आधार पर अस्थियां और राख ले जाते हैं।
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