पटना सिटी के नगीना शर्मा ने हर गरीब के लिए उम्मीद की नई किरण पैदा की है। लड़कर अपना हक लेने का जज्बा दिखाया। दिल्ली में कोई ठौर ठिकाना नहीं होने के बाद भी वे 70 दिनों से दिल्ली में डटे रहे। सिस्टम से दिल्ली हाईकोर्ट के माध्यम से लड़े। हक लिया। दरअसल, श्रमिक नगीना लॉकडाउन से पहले दिल्ली आए थे। उन्हें 12 मार्च को ब्रेन स्ट्रोक हुआ।
13 को दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में भर्ती हुए। डाॅक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन करना होगा। 5 यूनिट ब्लड मांगा गया। 18 को ऑपरेशन की तारीख दी गई। इस बीच 20 वर्ष का बेटा शुभम तीमारदारी में दिल्ली आ गया। किसी कारण ऑपरेशन टल गया। एकबार टला तो फिर टलता ही गया।
क्यों टला, इसका जवाब न अस्पताल निदेशक ने दिया और न ही डाॅक्टरों की टीम ने। ऑपरेशन 3 मई तक किसी कारण नहीं हुआ। तब तक उक्त अस्पताल को दिल्ली सरकार ने कोविड अस्पताल घोषित कर दिया। नगीना समेत पांच अन्य गरीब जिनका ऑपरेशन होना था सभी को बेड खाली करने का फरमान सुना दिया गया।
ब्रेन स्ट्रोक के चलते नगीना की बढ़ने लगी थी परेशानी, बोली भी लड़खड़ाने लगी थी
नगीना ने बताया कि वे दिल्ली के नहीं हैं, लॉकडाउन में कहां जाएंगे। उन्हें दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया जाए। एलएनजेपी के डाॅक्टरों ने जीबी पंत रेफर किया। वहां किसी ने नहीं देखा। फिर राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर किया गया। वहां भी चिकित्सकों ने असमर्थता दिखाई। तब तक ब्रेन स्ट्रोक से परेशानी बढ़ने लगी।
50 वर्षीय नगीना पैदल चलने में परेशानी महसूस करने लगे। बोली लड़खड़ाने लगी। उन्होंने दिल्ली स्वास्थ्य निदेशालय से निवेदन किया कि ईडब्लूएस कैटेगरी में निजी अस्पताल में व्यवस्था कर दी जाए। सर गंगाराम अस्पताल में ऑपरेशन के लिए औपचारिकताएं पूरी कीं। तब गंगाराम ने भी उन्हें जवाब दे दिया।
दिल्ली सरकार का आदेश भी जब निजी अस्पताल ने मानने से इनकार कर दिया तब नगीना ने हाईकोर्ट का रुख किया। तब तक उनकी मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट की वकील श्वेता सांड का साथ मिला चुका था। श्वेता ने याचिका दाखिल की। 21 को कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए नगीना को तुरंत इलाज का आदेश जीबी पंत अस्पताल को दिया।
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