वर्ष 2021 हर्बल प्रॉडक्ट के लिए जशपुर को एक नई पहचान देगा। क्योंकि वन विभाग ने कई ऐसे प्रॉडक्ट बनाने की तैयारी पूरी कर ली है जिसकी डिमांड प्रदेश के साथ देशभर में होगी। जशपुर में बनने वाले यह सभी प्रॉडक्ट आयुर्वेदिक डॉक्टरों की निगरानी में बनाए जाएंगे। संजीवनी विक्रय केन्द्र के माध्यम से इसकी बिक्री जशपुर में होगी। इसके साथ ही प्रदेश भर की संजीवनी दुकानों में अगले साल यहां के प्रॉडक्ट पहुंचने लगेंगे।
वन विभाग के एसडीओ सुरेश गुप्ता ने बताया कि वर्ष 2021 में जशपुर में वासा कफ सीरप तैयार किया जाएगा। वासा को स्थानीय भाषा में अड़ुषा भी कहा जाता है जो इस क्षेत्र में बहुतायत में उपलब्ध है। इसके आयुर्वेदिक गुणों की बात करें तो वासा सर्दी, खांसी व दमा जैसी बीमारियों के बेहद कारगर औषधी है। इसलिए जिले में इससे कफ सीरप तैयार करने का काम शुरू किया जाएगा। जशपुर जिले के फरसाबहार सहित लगभग जिले भर में पलाश के फूल भी बहुतायत में होते हैं। जनजातियों द्वारा शुरू से पलाश के फूलों से रंग तैयार करने का काम किया जाता है। 2021 में जब पलाश के फूल खिलेंगे तो इसके संग्रहण का काम किया जाएगा और इन फूलों से हर्बल गुलाल बनाने का काम किया जाएगा। इसकी बिक्री स्थानीय बाजार में ही की जाएगी। यदि बाहर से डिमांड आती है तो इसे बाहर भी भेज जाएगा।
यह काम चल रहे
लघुवनोपज संग्रहण
- कुल संग्रहित मात्रा - 19525 क्विंटल
- संग्राहक परिवारों को लाभ - 4 करोड़ रुपए
- संलग्न महिला स्व सहायता समूह - 388
वनोपज से मुनाफा बढ़ेगा
डीएफओ श्रीकृष्ण जाधव ने बताया कि वनधन योजना के तहत यह सभी काम होंगे और इससे ग्रामीणों का वनोपज से मुनाफा बढ़ेगा। सभी काम स्थानीय स्व सहायता समूहों द्वारा किए जाएंगे। इससे महिला सशक्तीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा। और घरेलू महिलाओं को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे।
हमारे च्यवनप्राश की डिमांड ज्यादा इस सीजन में 30.07 क्विंटल बिका
वन विभाग द्वारा शहर के नजदीक पनचक्की में च्यवनप्राश का निर्माण कराया जा रहा है। प्रदेश भर में सिर्फ जशपुर जिले में ही च्यवनप्राश बनाने का काम चल रहा है। इस वर्ष विभाग द्वारा 30.07 क्विंटल च्यवनप्राश बनाया जा चुका है। 13 लाख 46 हजार रुपए के च्यवनप्राश प्रदेश भर के संजीवनी विक्रय केन्द्र के माध्यम से बेचे गए हैं। च्यवनप्राश बनाने का काम धनवंतरी स्व सहायता समूह द्वारा किया जा रहा है। इस सीजन में समूह की कमाई 3 लाख रुपए से अधिक हुई है। यह काम समूह द्वारा वर्ष 2004 से किया जा रहा है। जशपुर के च्यवनप्राश की खूबी यह है कि इसमें लगभग 40 तरह की जड़ी बूटियां डाली जा रही है जो कि लोकल जंगल से ली जा रही है।
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